प्रारंभिक जीवन :(1863 -88) Early Life
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में कलकत्ता में हुआ था। इस धरती पर कभी-कभी ज्ञान ज्योति प्रदान करने वाले महापुरुष भी जन्म लेते हैं। उनके बचपन का नाम वीरेश्वर पीले और नरेंद्र नाथ था। उनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त और माताजी का नाम भुवनेश्वरी देवी था। लेकिन विश्व में स्वामी विवेकानंद के नाम से ही वे जाने जाते हैं। वह बचपन से ही प्रतिभाशाली और विवेकी थे।
उनके पिता एक अद्भुत, विद्वान, विद्या अनुरागी और सज्जन (gentleman) व्यक्ति थे। पिता के गुण स्वामी विवेकानंद जी को विरासत में मिली उनके स्मरण शक्ति बड़ी प्रबल थी वह बचपन में जिद्दी स्वभाव के थे। अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करते थे। उनके घर में नियम पूर्वक रोज पूजा पाठ होता था। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेंद्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गए। बचपन से ही ईश्वर को जानने की उत्सुकता में कभी-कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके पिता और कथावाचक पंडित जी तब चक्कर में पड़ जाते थे।
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शिक्षा: Education
सन 1871 में 8 साल की उम्र में नरेंद्र नाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन संस्थान में दाखिला लिया जहां वे स्कूल गए। 1879 में कोलकाता अपने परिवार की वापसी के बाद वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज (Presidency College) प्रवेश परीक्षा में प्रथम श्रेणी first class में अंक प्राप्त किए। इनकी वेद उपनिषद ,भागवत गीता, रामायण महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक शास्त्रों में गहन रूचि थी। नरेंद्र को भारतीय शास्त्रीय संगीत में और शारीरिक व्याम में खेल में भाग लिया करते थे। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा Pass की और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी की उन्होंने स्पेंसर Sponsor की किताब एजुकेशन (1860) का बंगाली में अनुवाद किया संस्कृत ग्रंथों और बंगाली साहित्य को भी सिखा विलियम हिस्टी (William hasty) ने नरेंद्र के बारे में लिखें –
नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाके मैं यात्रा की है, लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला एक भी बालक नहीं देखा यहां तक कि जर्मन विश्वविद्यालय के दर्शनिक छात्रों में भी नहीं है।
गुरु: Teacher
नरेंद्र का मन आध्यात्मिक चिंतन में लगने लगा वह सांसारिक विषमता और भेदभाव से आध्यात्मिक चिंतित और अशांत हो गए। इस प्रकार वे व्याकुल होकर कोलकाता के विभिन्न धार्मिक व्यक्तियों के पास आने जाने लगे नरेंद्र का मन निरंतर ईश्वरीय ज्ञान की उत्कंठा जिज्ञासा के प्रति अशांत होता गया। इस दौरान उनके विवाह (Marriage) की तैयारी भी होने लगी वह साफ इनकार कर चुके थे अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासा (Spiritual life) को शांत करने के लिए वे श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलने उनके आश्रम गए।
स्वामी विवेकानंद जी को जब रामकृष्ण परमहंस ने निकट से देखा तो उन्होंने क्षण भर में ही पहचान लिया और कहा तुम कोई साधारण मनुष्य नहीं हो ईश्वर ने तुम्हें समस्त मानव जाति के कल्याण (Welfare) के लिए ही भेजा है। इसी बीच स्वामी विवेकानंद के पिता का स्वर्गवास हो गया जिसके पश्चात वे सन्यास पथ पर चलने का निश्चय कर चुके थे। रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें समझाया कि संसार में लाखों दुखी हैं। उनका दुख दूर करने के लिए तुम्हारा जन्म हुआ है। विवेकानंद जी स्वामी रामकृष्ण जी के सुझाव (Suggestion) से प्रभावित हुए उसी समय से शिक्षित होकर संसार के कल्याण हेतु निकल पड़े कुछ समय पश्चात स्वामी रामकृष्ण जी का निधन हो गया। उनके सभी शिष्यों ने स्वामी विवेकानंद जी को अपना गुरु मान लिया। उन्होंने कई शास्त्रों का विधिवत अध्ययन मनन किया और ज्ञान प्रचार के लिए कई देशों की यात्रा की।
ब्रह्म समाज की स्थापना : प्रभाव | Establishment of Brahmo Samaj
स्वामी विवेकानंद 1880 में ईसाई से हिंदू धर्म में रामाकृष्ण के प्रभाव से परिवर्तित केशव चंद्र सेन की नव विधान में शामिल हुए। विवेकानंद 1884 से पहले कुछ बिंदु पर एक फ्री मैसोनरी लॉज और साधारण ब्रह्म समाज को ब्रह्म समाज का ही एक अलग गुट था और जो केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में था। 1881-1884 के दौरान ये सेन्स बैंड ऑफ होप में भी सक्रीय रहे। विवेकानंद के परिवेश के कारण पश्चिमी अध्यात्मिकता के साथ परिचित हो गया था। उनके प्रारंभिक विश्वासों को ब्रह्म समाज ने जो एक निरंकारी स्वर में विश्वास और मूर्ति पूजा का प्रतिवाद पढ़ता था मैं प्रभावित किया और सुव्यवस्थित युक्ति संगत अद्वैतवाद अवधारणाओं धर्मशास्त्र वेदांत और उपनिषदों (Rational, Non optimist, Concepts, Dharmashastra, Monism, Upanishads) के एक चयनात्मक और आधुनिक ढंग से अध्ययन पर प्रोत्साहित किया।
सर्व धर्म सम्मेलन भाषण : All Religion conserence : Speech
24 वर्ष की अवस्था में विवेकानंद जी ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया उसके बाद वे विश्व भ्रमण के लिए पैदल निकल पड़े 31 मई सन 1893 के अपनी यात्रा शुरू की जपान के कई शहरों से होते हुए चीन कनाडा होते हुए अमेरिका में जा पहुंचे। शिकागो में विश्व धर्म परिषद हो रही थी। स्वामी विवेकानंद उसमें भारत के प्रतिनिधित्व के रूप में पहुंचे यूरोप और अमेरिका के लोग उस समय भारत वासियों को बहुत बुरी नजर से देखते थे। इसलिए उन्होंने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को उस परिषद में बोलने का मौका ना दिया जाए परंतु उनको किसी तरह उसे परिषद में बोलने का मौका मिल गया और उन्होंने कहा-
मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों !! उनकी बुलंद आवाज और इस तरह के संबोधन से सन्नाटा (silence) छा गया फिर तालियों की आवाज से गूंज उठा यहीं पर उन्होंने कहा संसार में एक ही धर्म है और उसका नाम है मानव धर्म इसके प्रतिनिधि विश्व में समय-समय पर रामकृष्ण क्राइस्ट रहे आदि होते रहे हैं। जब ईश्वरीय दूत मानव धर्म के संदेशवाहक बनकर विश्व में अवतरित हुए थे तो आज संसार भिन्न भिन्न धर्मों में क्यों है ? धर्म का उद्गम तो प्राणी मात्र की शांति और उन्नति के लिए हुआ है परंतु आज चारों और अशांति के बादल मंडराते हुए दिखाई पड़ते हैं और यह दिन प्रतिदिन बढ़ते हैं जा रहे हैं अतः विश्व शांति (World Peace) के लिए सभी लोगों को मिलकर मानव धर्म की स्थापना और उसे सुदृढ़ Strong करने का प्रयत्न करना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद: शिक्षा दर्शन । Swami Vivekanand: Education Philosophy
वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास (Omniscient Development) हो सके बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है। जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती जो चरित्र निर्माण नहीं करती जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती ऐसी शिक्षा से क्या लाभ है?
अतःस्वामी विवेकानंद जी व्यवहारिक शिक्षा को व्यक्ति के लिए उपयोगी मानते थे। व्यक्ति की शिक्षा ही उसे भविष्य के लिए तैयार करती है। इसलिए शिक्षा में उन तत्वों का होना आवश्यक है, जो उनके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।
शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत: Basic principles of education philosophy
- शिक्षा ऐसे ही हो जो सीखने वाले को जीवन संघर्ष से लड़ने की शक्ति दें।
- मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।
- देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाए
- शिक्षा ऐसी हो जिसे बालक का शारीरिक मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके
- बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए
- धार्मिक शिक्षा पुस्तकों द्वारा ना देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए
शिक्षा पर विचार : Thoughts on education
शिक्षा का उपयोग किस प्रकार चरित्र गठन के लिए किया जाना चाहिए इस विषय में स्वामीजी कहते हैं शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे दिमाग में ऐसी बहुत सी बातें इस तरह ठूस दी जाए जो आपस में लड़ने लगे और तुम्हारा दिमाग उन्हें जीवन भर ना कर सके जिससे हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके, और विचारों का सामंजस्य कर सके, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का विकास ही है।
स्वामी विवेकानंद जी केअनमोल वचन (Precious Words of Swami Vivekananda)
स्वामी विवेकानंद जी के कहे कुछ अनमोल वचन Precious words
- उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
- पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
- एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारों बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
- एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
- जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है लेकिन रिश्तो में जीवन होना बहुत जरूरी है।
कहानियां : Story of Swami Vivekananda in Hindi
- कहानी सुनाने में नरेंद्र का कोई जवाब ना था। जब वह कहानी सुनाना शुरू करते उनके सहपाठी सब कुछ भूल कर उनकी कहानी सुनने लगते हैं। एक दिन अपने सहपाठियों को नरेंद्र कहानी सुना रहे थे। कक्षा में शिक्षक आकर पढ़ना शुरू कर दिया। सभी कहानी सुनने में मगन लग रहे, शिक्षक ने उन्हें देखा और सभी से प्रश्न पूछना शुरू किया, नरेंद्र के अलावा किसी ने उत्तर नहीं दिया, एक नरेंद्र को छोड़कर बाकी सभी को दंड दिया। सभी के साथ नरेंद्र खड़े हो गए और शिक्षक से कहा “मैं ही कहानी सुना रहा था” ऐसा थी सचाई के प्रति स्वामी विवेकानंद जी की निष्ठा।
- नरेंद्र को किताब पढ़ने का बड़ा शौक था वह प्रतिदिन पुस्तकालय से एक किताब लाते और उसी दिन उसे वापस दे देते थे और दूसरी ले जाते थे पुस्तकालय के अधिकारी को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसे लगा कि यह पुस्तक पढ़ता है या सिर्फ ढोंग करता है एक दिन अधिकारी ने नरेंद्र से पूछा ही लिया की इतनी जल्दी कैसे पढ़ सकते हो नरेंद्र ने कहा आप मुझसे इन किताबों में से कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं अधिकारी ने एक किताब उठाई और प्रश्न पूछने लगा नरेंद्र ने उनके सभी प्रश्नों के सही सही उत्तर दिए अधिकारी के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा उसने पूछा ऐसा कैसे हो सकता है नरेंद्र ने कहा यह सिर्फ अभ्यास है एकाग्रता है मन लगाकर पढ़ने से यह सब संभव है।
- “भागो भागो” इस पेड़ पर भूत है माली की बात सुनते ही सभी बच्चे तुरंत पेड़ से नीचे कूद पड़े और भाग गए माली ने चैन की सांस ली तभी पेड़ से आवाज आई माली भैया कहां है भूत मुझे तो ढूंढने पर भी नहीं मिला भूत हो तो दिखाई ना दे माली बालक की निर्भयता देखकर आश्चर्यचकित था। बालक का नाम था नरेंद्र यही नरेंद्र आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- एक बार स्वामी विवेकानंद जी अपने आश्रम में सो रहे थे कि तभी एक व्यक्ति उनके पास आया जो कि बहुत दुखी था और बोला मैं अपने जीवन में खूब मेहनत करता हूं हर काम खूब मन लगाकर भी करता हूं फिर भी सफल व्यक्ति नहीं बन पाया स्वामी विवेकानंद ने कहा ठीक है आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर तक घुमा कर लाए वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने के लिए चला गया जब वह वापस आया तो विवेकानंद जी ने पूछा यह कुत्ता इतना क्यों हाफ रहा है और तुम बिल्कुल भी नहीं इस पर व्यक्ति ने कहा मैं तो सीधे रास्ते चल रहा था तब कुत्ता इधर-उधर भागता हुआ दौड़ता रहा जिसके कारण यह इतना थक गया।
इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराते हुए कहा बस यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है तुम अपने मंजिल के बजाय इधर-उधर भागते हो जिससे तुम अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो पाए अगर सफल होना है तो अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
मृत्यु : Death
उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अंतिम दिन 4 जुलाई 1902 को ध्यान करने की दिनचर्या में महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चंदन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गई। इसी गंगा तट को दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का 16 वर्ष पूर्व अंतिम संस्कार हुआ था।
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