अनुच्छेद 35A (Article 35a) क्या है और इसके अदृश्य तथ्य ? जाने पूरी जानकारी हिंदी में – Hello दोस्तों, जैसा कि आप जानते ही है की हम अपनी Website SarkariExamHelp के माध्यम से हमेशा आप के लिए परीक्षा उपयोगी पाठ्य-सामग्री उपलब्ध करवाते है. आज का पोस्ट बहुचर्चित मुद्दा “अनुच्छेद 35A (Article 35a)” है, जिसने बहुत बवाल मचा रखा है . जो छात्र IAS, UPSC या Civil Services की तैयारी कर है उनके उनके लिए ये आर्टिकल 35a क्या है और इसके अदृश्य तथ्य पढना काफी लाभकारी साबित हो सकता है.
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अनुच्छेद 35A (Article 35a) की पूरी जानकरी
दरअसल दिल्ली की एक गैर सरकारी संस्था द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ‘अनुच्छेद 35A’ को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है. जिसकी वजह से कट्टरपन्थियो के साथ साथ राजनीतिक दलों में हलचल मची हुई है.
अनुच्छेद 35A को हटाने की बात में इतना तूफान मचा रखा है. भारत की आजादी के बाद से ही ये मुद्दा काफी विवादित रहा है,देश की गैर कांग्रेसी पार्टी तथा कुछ विद्वान कश्मीर में व्याप्त आलगाववाद की वजह इस धारा को ही मानते है. स्वतंत्र भारत में कश्मीर का मुद्दा आज तक विवादित है.
संविधान में ना मिलने वाला या संविधान का वो अदृश्य हिस्सा जो जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को “स्थायी नागरिक” की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है. यह कई दशको से यहाँ बसे लोगों को आज भी मौलिक अधिकारों वंचित करता है, जो आज तक शरणार्थी (Refugee) ही कहलाते है.
कश्मीर विवाद का इतिहास
1947 के बंटवारे के दौरान लाखो लोग भारत शरणार्थी बन कर आये और देश के कई हिस्सों में बसकर वहां के स्थायी निवासी कहलाने लगे. लेकिन यह दुर्भाग्य है की जम्मू-कश्मीर में बसे लोगो की स्थिति ऐसी नहीं बन पाई.
कई दशकों और कई पीढ़ियों के बाद भी ये लोग जम्मू-कश्मीर के निवासी नहीं कहलाते इन्हें अपना प्रधानमंत्री चुनने और बनने का अधिकार है यानि लोकसभा के चुनावों में वोट डाल सकते है और लोकसभा चुनाव लड़ भी सकते है, किन्तु विधासभा हो या पंचायत चुनाव इन्हें वोट डालने या चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है.
इनके बच्चे सरकारी संस्थानों में नहीं पढ़ सकते अगर राज्य से बाहर रहकर या निजी संस्थानों के माध्यम से पढ़ जाये तो जम्मू-कश्मीर के अन्दर सिर्फ सफाई कर्मचारी के आलावा अन्य कोई नौकरी नहीं मिलती है.
आपातकाल -जून 1975
भारतीय गणतंत्र का सबसे बुरा दौर कहलाता है, आपातकाल के दौर में कई संविधान संशोधन हुए जो संविधान के साथ खिलवाड़ है साथ ही साथ भारतीय न्यायपालिका और नागरिक अधिकारों को राजनीतिक महत्वाकांक्षाओ की भेट चढ़ा दी गई.
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जम्मू-कश्मीर का कुछ विशेषाधिकार
भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को कुछ विशेषाधिकार देती है जो की नीचे बताई गयी है. जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है.
- दोहरी नागरिकता
- जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग है.
- प्रदेश के अन्दर तिरंगा और प्रतिको का अपमान अपराध नहीं है.
- यहाँ विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों में 5 वर्ष का हिता है.
- धारा 370 की वजह से RTI और CAG लागु नहीं होता है.
- भारतीय नागरिक होने के बावजूद लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते है.
- कश्मीरी लड़की से शादी करने पर पाकिस्तानी को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाती है जबकि भारत के अन्य राज्यों के लड़के से शादी होने पर लड़की के अधिकार और नागरिकता दोनों ही छीन लिए जाते है.
- राज्य को प्राप्त विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर में धारा 356 लागु नहीं होता. यही कारण है की राष्ट्रपति को राज्य का संविधान रद्द करने का अधिकार नहीं है.
- धारा 360 (देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान) जम्मू-कश्मीर में लागु नहीं है.
जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के अनुसार
14 मई 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा आदेश के जरिये Article 35a जोड़ा गया उसकी सजा आज भी लाखो लोगो को भुगतनी पर रही है. आज हमारे देश में उठ रहे कई सवालों में यह एक विशेष मुद्दा बना हुआ है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे अनुच्छेद 35A अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा है. लेकिन अनुच्छेद ३५a (Article 35a) जिसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है.
अर्थात 1954 में जिस आदेश पर 35a संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत राष्ट्रपति के द्वारा पारित किया गया था. जबकि इसका अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को ही है. क्योंकी भारतीय संविधान में कुछ भी नया अनुच्छेद जोड़ना मतलब सीधे संविधान को संशोधित करना है. इसीलिए 1954 में राष्ट्रपति के आदेश पर हुआ संशोधन असंवैधानिक है.
यह संशोधन के बाद कई सालों तक इसकी जानकरी ज्यादा लोगों को नहीं थी. नाही इसे कभी भी सदन में पेश किया गया. चूँकि यह राष्ट्रपति के द्वारा पारित किया गया था इसीलिए इस अध्यादेश को अन्य अध्यादेश की तरह छः माह बाद समाप्त माना जाना चाहिए था.
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अनुच्छेद 35A (Article 35a) के बनाये रखने के पक्ष में तर्क
Article 35A अगर असंवैधानिक घोषित होता है तो सामने बहुत ही बड़ी समस्या है की घाटी में हालत अत्यंत संवेदनशील है. इसे समाप्त करते ही कश्मीरियों का भारत के प्रति लगाव और सम्बन्ध ख़राब और कमजोर हो जायेंगे. परिस्थितियां बिगड़ सकती है इससे राष्ट्रपति के आदेशों को क़ानूनी चुनौती भी दी जा सकती है. राष्ट्रपति के आदेश के कारण ही कश्मीरियों को भारत का नागरिक माना जाता है.
अनुच्छेद 35A (Article 35a) को समाप्त करने के पक्ष में तर्क
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को जहाँ विशेषाधिकार देता है वही लाखों लोगो से पीढ़ी दर पीढ़ी मानवाधिकार तक छीन रहा है. धारा 370 जहाँ प्रवासी नागरिक (पाकिस्तान से आकर बसे) को राज्य के विषय के रूप में स्वीकार करता है (समानता के अधिकार का हनन). जबकि Article 35a भारत के नागरिक को बसने नहीं देता.
साथ ही लैंगिक भेदभाव संविधान द्वारा ही हो रहा है जिसमे महिलाएं गैर कश्मीरी (पाकिस्तानी छोड़कर) से शादी के बाद अपने सारे अधिकार खो देती है.
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धारा 370 और अनुच्छेद 35A
धारा 370 और अनुच्छेद 35A बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है, जरुरी नहीं की Article 35A समाप्त ही किया जाये बल्कि इसमें कुछ सुधार करके सराहनीय बदलाव किये जाये.
निश्चित तौर से यह जम्मू और कश्मीर को प्राप्त विशेषाधिकार अलगाववादियों और गैर-स्थानीय लोगो के मानवाधिकारों के बीच का टकराव का मुद्दा है. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के बाद शायद स्थिति और जानकारी दोनों ही साफ़ हो जाये.
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