लाल बहादुर शास्त्री: सादगी, ईमानदारी और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम भारतीय राजनीति में सादगी, ईमानदारी और राष्ट्र के प्रति समर्पण का पर्याय माना जाता है। उनका जीवन संघर्ष, त्याग और आदर्शों से भरा हुआ था। वे ऐसे नेता थे, जिनके विरोधी भी उनके विचारों और व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।

शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर) में हुआ। संयोग देखिए कि उनका जन्मदिन महात्मा गांधी के जन्मदिन के साथ ही पड़ता है। यही कारण है कि हर साल 2 अक्टूबर को देश गांधी जयंती के साथ-साथ शास्त्री जयंती भी मनाता है।

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इस लेख में हम जानेंगे कि श्रीवास्तव परिवार में जन्म लेने वाले लाल बहादुर जी का उपनाम “शास्त्री” कैसे पड़ा, और उनके जीवन से जुड़े 10 रोचक तथ्य, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।

Table of Contents

श्रीवास्तव से शास्त्री कैसे बने?

लाल बहादुर जी का पैतृक उपनाम श्रीवास्तव था। लेकिन वे जातिवाद और ऊँच-नीच की सामाजिक व्यवस्था को पसंद नहीं करते थे। वे लोकसेवक मंडल के आजीवन सदस्य बने, जो पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कार्य करता था।

1925 में जब उन्होंने वाराणसी स्थित काशी विद्यापीठ से स्नातक की पढ़ाई पूरी की, तो उन्हें “शास्त्री” की उपाधि दी गई। इसके बाद उन्होंने अपने नाम से “श्रीवास्तव” हटाकर “शास्त्री” जोड़ लिया। यही उपनाम आगे चलकर उनकी पहचान बन गया।

राजनीति में अलग पहचान

लाल बहादुर शास्त्री जी का व्यक्तित्व छोटा कद, सौम्य स्वभाव और सरल जीवनशैली का प्रतीक था। लेकिन उनके इरादे फौलाद जैसे मजबूत थे। प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल भले ही केवल 19 महीनों का रहा, लेकिन उन्होंने देश की राजनीति और समाज पर अमिट छाप छोड़ी।

आज जब राजनीति में स्वार्थ और विवाद हावी हैं, शास्त्री जी का जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श और प्रेरणा है।

लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े 10 रोचक तथ्य

जय जवान, जय किसान

1. जातिवाद से ऊपर उठकर “शास्त्री” बने

जन्म से उनका नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। लेकिन जातिवादी सोच से दूर रहने के कारण उन्होंने “शास्त्री” उपनाम अपनाया। यह कदम उनकी प्रगतिशील सोच का प्रतीक था।

2. रेल हादसे की नैतिक जिम्मेदारी

रेल मंत्री रहते हुए एक बड़े रेल हादसे के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। यह भारतीय राजनीति में दुर्लभ उदाहरण है। बाद में गृहमंत्री बनने पर उन्होंने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए पहली समिति गठित की।

3. बेटे का प्रमोशन रुकवाया

जब उन्हें पता चला कि उनके बेटे को समय से पहले प्रमोशन मिल गया है, तो उन्होंने तुरंत आदेश देकर प्रमोशन रुकवा दिया। यह उनकी निष्पक्षता और ईमानदारी का प्रमाण है।

4. प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली कार

शास्त्री जी बेहद साधारण जीवन जीते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी पहली और आखिरी कार (फिएट) खरीदी। इसके लिए उन्हें 5000 रुपये का लोन लेना पड़ा। उनकी मृत्यु के समय तक यह कर्ज बाकी था, जिसे उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने पेंशन से चुकाया।

5. सरकारी गाड़ी का किराया जमा किया

एक बार उनके बच्चों ने सरकारी गाड़ी का निजी उपयोग कर लिया। शास्त्री जी ने इसे गलत माना और सरकारी दर पर गाड़ी का किराया खुद सरकारी खजाने में जमा कर दिया।

6. महिला कंडक्टरों की नियुक्ति

उत्तर प्रदेश में पुलिस और यातायात मंत्री रहते हुए उन्होंने पहली बार लाठीचार्ज की जगह वॉटर कैनन का इस्तेमाल शुरू करवाया। साथ ही, उनके कार्यकाल में पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति हुई।

7. मरणोपरांत भारत रत्न

लाल बहादुर शास्त्री देश के पहले नेता बने जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

8. “थर्ड क्लास” वाला किस्सा

एक बार किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने उन्हें फर्स्ट क्लास यात्रा की व्यवस्था का आश्वासन दिया। इस पर शास्त्री जी ने कहा – “मेरे जैसे थर्ड क्लास व्यक्ति के लिए फर्स्ट क्लास इंतजाम की क्या आवश्यकता?” यह उनकी विनम्रता का उदाहरण है।

9. दहेज प्रथा का विरोध

शास्त्री जी दहेज प्रथा के कट्टर विरोधी थे। विवाह के समय उन्होंने ससुराल से कुछ भी लेने से इनकार कर दिया। बहुत आग्रह करने पर केवल एक खादी की धोती स्वीकार की।

10. ताशकंद में रहस्यमयी मृत्यु

प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल केवल 19 महीनों का रहा। 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में उनकी रहस्यमयी मृत्यु हो गई। इतने कम समय में भी उन्होंने देश की प्रगति और आत्मनिर्भरता की नींव रखी।

शास्त्री जी की विरासत

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व सत्ता या पद से नहीं, बल्कि ईमानदारी, सादगी और कर्तव्यनिष्ठा से पहचाना जाता है। उनका नारा “जय जवान, जय किसान” आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था।

लाल बहादुर शास्त्री FAQ सेक्शन

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर) में हुआ था।

उनका असली उपनाम क्या था?

उनका पैतृक उपनाम श्रीवास्तव था। लेकिन 1925 में काशी विद्यापीठ से स्नातक की डिग्री मिलने पर उन्हें “शास्त्री” की उपाधि दी गई, जिसे उन्होंने अपने नाम के साथ जोड़ लिया।

लाल बहादुर शास्त्री का प्रसिद्ध नारा कौन सा है?

उनका दिया हुआ नारा “जय जवान, जय किसान” आज भी भारत की आत्मा और मेहनतकश जनता की पहचान माना जाता है।

शास्त्री जी को भारत रत्न कब मिला?

लाल बहादुर शास्त्री जी को मरणोपरांत 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

लाल बहादुर शास्त्री कितने समय तक प्रधानमंत्री रहे?

वे केवल 19 महीनों तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। उनका कार्यकाल जून 1964 से जनवरी 1966 तक रहा।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु कब और कहाँ हुई?

उनकी मृत्यु 11 जनवरी 1966 को ताशकंद (उज़्बेकिस्तान) में हुई। यह मृत्यु आज भी रहस्यमयी मानी जाती है।

शास्त्री जी दहेज प्रथा के बारे में क्या सोचते थे?

वे दहेज प्रथा के सख्त विरोधी थे। विवाह के समय उन्होंने केवल एक खादी की धोती स्वीकार की थी।

क्या लाल बहादुर शास्त्री ने कभी इस्तीफा दिया था?

हाँ, रेल मंत्री रहते हुए एक बड़े रेल हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया था।

लाल बहादुर शास्त्री की पहली कार कौन सी थी?

प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी पहली और आखिरी कार फिएट खरीदी थी। इसके लिए उन्होंने 5000 रुपये का लोन लिया था।

लाल बहादुर शास्त्री को लोग क्यों याद करते हैं?

उन्हें उनकी सादगी, ईमानदारी, राष्ट्रभक्ति और निस्वार्थ नेतृत्व के लिए याद किया जाता है। वे भारतीय राजनीति में आदर्श और प्रेरणा के प्रतीक हैं।

लाल बहादुर शास्त्री जी का जीवन भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक आदर्श है। उन्होंने दिखाया कि सादगी और ईमानदारी के साथ भी देश का नेतृत्व किया जा सकता है।

आज जब हम उनकी 121वीं जयंती मना रहे हैं, तो यह अवसर है कि हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारें और राष्ट्र निर्माण में योगदान दें।

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